‘साम्राज्यों का कब्रिस्तान’ बाबर से लेकर अंग्रेजों तक सबकी हुई यहां हार…

दुनिया के नक्शे में अफगानिस्तान एक ऐसा इलाका है, जहां पर कोई ऐसा साम्राज्य या कोई ऐसी बड़ी शक्ति नहीं हुई, जिसने स्थाई तौर पर राज किया हो।

दुर्गम भौगोलिक स्थिति और लगातार दुश्मनों के खतरों की वजह से अफगानिस्तान को जीतना बड़ी शक्तियों के लिए हमेशा चुनौती भरा रहा।

इस इलाके को जीतने के लिए बाबर से लेकर अंग्रेजों की तक की आंखें चमक जाती थी लेकिन यह पूरी तरह से मुनासिब नहीं हो पाया।

इसी वजह से अफगानिस्तान को ‘साम्राज्यों का कब्रिस्तान’ कहा जाता है। अफगानिस्तान का अधिकतर हिस्सा पहाड़ी है। 800 किलोमीटर लंबी हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला अफगानिस्तान को दो हिस्सों में बांट देती है।

अफगानिस्तान का 75% हिस्सा पहाड़ी है। लोगों की बसावट घाटियों में ज्यादा संभव हो पाती है, इसलिए इस इलाके में दर्जनों घाटियां मौजूद हैं।

दुर्गम है अफगानिस्तान का इलाका
अफगानिस्तान के इतिहास के पन्नों को पलट कर देंखे तो पता चलता है कि यहां कब्जा करना और उस पर शासन करना कितना मुश्किल है। हमें सबसे पहले 500 ईसा पूर्व के आसपास अफगानिस्तान के इतिहास की एक स्पष्ट झलक मिलती है, जब फारसी साम्राज्य के इसके पूर्वी हिस्से का गठन किया।

अफगानिस्तान के कुछ हिस्से पहले गांधार के प्राचीन भारतीय साम्राज्य का हिस्सा थे, जो अब उत्तर पश्चिम पाकिस्तान और पूर्वी अफगानिस्तान का एक क्षेत्र है।

सिकंदर ने भी लड़ी लड़ाई
संभवतः दक्षिणी और पूर्वी अफगानिस्तान का अधिकांश भाग पहले से ही आज के पश्तूनों के अधीन था, जो ऐतिहासिक रूप से अफगानी माने जाते हैं। उनकी पश्तो भाषा एक प्राचीन पूर्वी ईरानी भाषा है।

इस समय अफगानिस्तान अपेक्षाकृत कम आबादी वाला था। सिकंदर महान के बारे में कहा जाता है कि वह थोड़े प्रतिरोध के बाद इस साम्राज्य को हासिल करने में कामयाब रहा, लेकिन लौटते वक्त उसकी मौत के बाद भारत के मौर्य साम्राज्य ने अधिकांश अफगानिस्तान को नियंत्रित किया।

हालांकि, उत्तरी अफगानिस्तान के बल्ख (बैक्ट्रिया) में एक ग्रीक उत्तराधिकारी साम्राज्य का उदय हुआ। इस अवधि के दौरान बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म पूरे क्षेत्र में फैल गया।

मौर्य साम्राज्य के पतन और मध्य एशिया के कई आक्रमणों के बाद ही अफगानिस्तान के पहाड़ में लोगों की बसावट होने लगी। कई जंगी शख्सियतों के घर होने की वजह से इस इलाके ने प्रतिष्ठा हासिल की। ये लड़ाके अपने-अपने व्यक्तिगत रसूख और जमीनों को हथियाने और इनकी सुरक्षा में लड़ाई लड़ते रहे।

बाबर को होना था यहां दफन
जहीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर, पहला मुगल सम्राट भारत पर विजय हासिल करने से पहले दो दशकों तक खुद को काबुल में एक राज्य प्राप्त करने में कामयाब रहा।

बाबर 11 साल की अवस्था में सन् 1494 में फरगना का शासक बना। उसके अंदर काबुल जीतने की लालसा थी। बाबर ने 1501 में समरकंद जीता जहां वह आठ महीने ही रहा।

इसके बाद बाबर ने गजनी पर अधिकार कर लिया। दूसरे साम्राज्य को हथियाने की लालसा लिए बाबर जब भी आगे की ओर बढ़ता उसे पुराने साम्राज्य से हाथ धोना पड़ जाता।

जब उसका आखिरी वक्त आया तब बाबर की इच्छा थी कि उसे काबुल में दफनाया जाए पर पहले उसे आगरा में दफनाया गया। लगभग नौ वर्षों के बाद हुमायूं ने उसकी इच्छा पूरी की और उसे काबुल में दफनाया।

अंग्रेजों की कोशिश रही नाकाम
अंग्रेजों ने भारत आने के बाद साल 1839 से लेकर 1919 तक अफगानिस्तान जीतने के लिए तीन लड़ाइयां लड़ी। इनमें से कोई भी ऐसी लड़ाई नहीं हुई जो चंद महीनों या फिर एक साल तक न चली हो।

19वीं सदी में अमूमन पूरे भारत को हथिया चुके अंग्रेजों की निगाहें पंजाब जीतने के बाद अफगानिस्तान पर थी। मगर इस बार भी इतिहास ने खुद को फिर से दोहराया।

अंग्रेजों के लिए अफगानिस्तान पर कब्जा करने की लड़ाई आसान नहीं थी। इसके पीछे कोई और नहीं बल्कि वजह था रूस। अंग्रेजों के अफगानिस्तान की और बढ़ने से रूस की अपने रसूख पर बन आई।

अब रूस का एक ही मकसद था – अंग्रेजों को रोकना। आखिर में नतीजा यही हुआ कि अफगानिस्तान को जीतने के लिए तीन लड़ाइयां लड़ने के बाद भी अंग्रेज यहां स्थाई कब्जा नहीं जमा पाए।

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