सूडान के खूनी संघर्ष में अब तक 400 की मौत, क्यों मचा है रक्तपात; बाकी देशों पर क्या होगा असर…

सूडान के अराजकता में डूबने के निकटवर्ती और दूरगामी भू-राजनीतिक परिणाम देखने को मिलेंगे। इसमें अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्य भी शामिल हैं।

ऐसे में सूडान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से मध्यस्थता के लिए किए गए प्रयास ना केवल रक्तपात को रोकने की इच्छा हो सकते हैं, बल्कि की यह विश्व राजनीति पर युद्ध के असर को सीमित करने की चाहत भी हो सकते हैं।

हिंसा और अराजकता के बीच सूडान से राजनयिकों के भागने का मंजर स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है, लेकिन ये दृश्य संघर्षग्रस्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय हित की सीमा को भी दर्शाते हैं।

सूडान में बीते कुछ दिनों से जारी हिंसा में अब तक करीब 400 लोगों की मौत हो चुकी है।

पश्चिम एशिया, यूरोप, एशियाई देशों के अलावा अमेरिका अपने शिक्षकों, छात्रों और दूतावास के कर्मचारियों के अलावा अन्य नागरिकों को राजधानी खार्तूम समेत वहां के अन्य हिस्सों से निकालने के काम में जुटे हुए हैं।

बेशक, प्रवासी कर्मचारी सभी देशों में रहते हैं। लेकिन सूडान को लेकर इस तथ्य को नजरअंदाज करना मुश्किल है कि हर कोई सूडान का एक हिस्सा चाहता है।

सूडान में 2019 में हुए तख्तापलट ने उमर अल-बशीर की क्रूर तानाशाही को समाप्त कर दिया था। इसके बावजूद बाद के वर्षों में देश में लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ।

इसके बजाय, ऐसी स्थिति बनी की कई देशों ने सूडान में सत्ता के संक्रमण, सूडान के सामरिक महत्व और वहां की खनिज संपदा को भुनाने की कोशिश शुरू कर दी।

क्यों शुरू हुआ खूनी संघर्ष?
जनरल अब्दुल-फतह बुरहान के नेतृत्व में सूडान की सेना और जनरल मोहम्मद हमदान डागलो के नेतृत्व में ‘रैपिड सपोर्ट फोर्स’के बीच सत्ता संघर्ष के चलते विदेशी नागरिकों की वहां से निकासी जारी है।

दोनों समूह पहले संयुक्त रूप से सरकार चला रहे थे, लेकिन अब वे सत्ता के लिए एक-दूसरे से संघर्ष कर रहे हैं। सूडान में दोनों समूहों के बीच 25 अप्रैल, 2023 को सऊदी अरब और अमेरिका ने तीन दिवसीय युद्धविराम की मध्यस्थता की थी।

छिटपुट लड़ाई के बावजूद, उस युद्धविराम को बाद में बढ़ा दिया गया। सूडान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से मध्यस्थता के लिए किए गए प्रयास न केवल रक्तपात को रोकने की इच्छा का संकेत देते हैं, बल्कि विश्व राजनीति पर युद्ध के असर को सीमित करने की इच्छा भी हो सकती है। सूडान का क्षेत्रीय, आर्थिक और सामरिक महत्व उसकी भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है।

सूडान के बारे में जानें
सूडान के पड़ोसी देशों में उत्तरी अफ्रीका स्थित मिस्र और लीबिया, हॉर्न ऑफ अफ्रीका में स्थित इथियोपिया और इरिट्रिया, दक्षिण में स्थित दक्षिण सूडान और मध्य अफ्रीका के चाड और मध्य अफ्रीकी गणराज्य शामिल हैं।

सूडान वह स्थान है जहां सफेद और नीली नील नदी मिलकर प्रमुख नील नदी बनाती हैं। यहां नील नदी बेसिन का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।

इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए नील नदी के पानी का सुरक्षित प्रबंधन महत्वपूर्ण है। उत्तरी पड़ोसी देश मिस्र अपनी जल आपूर्ति के लिए नील नदी पर 90 प्रतिशत निर्भर है, जबकि पूर्व में इथियोपिया ग्रैंड इथियोपियाई पुनर्जागरण बांध के निर्माण के माध्यम से देश की बिजली उत्पादन को दोगुना करना चाहता है।

यह परियोजना विवाद का एक विषय रही है। हालांकि, इथियोपिया ने 2020-2021 में मिस्र के साथ समझौते के बिना बांध को भरना शुरू कर दिया था।

मिस्र ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इथियोपिया की ओर से बांध को तीसरी बार भरने की योजना का विरोध किया था।

बाकी देशों के लिए कितना अहम
संयुक्त राष्ट्र ने तीन राष्ट्रों से नील नदी के प्रबंधन पर पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौते पर बातचीत करने का आह्वान किया है।

लाल सागर को लेकर सूडान की स्थिति रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। लाल सागर के जरिए दुनिया का लगभग 10 प्रतिशत वैश्विक व्यापार होता है, जिसमें स्वेज नहर एशियाई और यूरोपीय बाजारों को जोड़ती है।

सूडान में खनिजों का भंडार है। सूडान अफ्रीका महाद्वीप का सोने का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, उसके पास प्रमुख तेल भंडार हैं।

अपनी वैश्विक अवसंरचना पहल ‘बेल्ट एंड रोड’ के तहत चीन की सूडान में काफी रुचि है। वर्ष 2011 से 2018 के बीच चीन ने सूडान को 14.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया।

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