नीतीश ने विपक्षी जुटान तो कर लिया, पर एकता ख्वाब से कम नहीं; क्यों राह में मुश्किलें…

तमाम आशंकाओं और सवालों के बीच पटना में विपक्षी दलों की बैठक आखिर हकीकत का रूप लेने जा रही है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आह्वान पर बुलाई गई यह बैठक आने वाले चुनावों के मद्देनजर बेहद अहम साबित हो सकती है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि एक टेबल पर लाकर नीतीश कुमार ने अपना काम कर दिया है। लेकिन आगे की राह इतनी आसान नहीं होने वाली। 

इस बात को जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार की उस बात से भी समझा जा सकता है, जो उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को जवाब देते हुए कही है।

नीरज कुमार ने कहा कि जब भी गैर-भाजपाई दल एकजुट हुए हैं, मोदी का जादू फीका पड़ा है और गृहमंत्री की रणनीति भी फेल हुई है।

उन्होंने आगे कहा कि साल 2015 में बिहार ने इसे साबित करके दिखाया था और अब वक्त है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर किया जाए। इतिहास खुद को दोहराएगा। ऐसे में भाजपा की बेचैनी समझी जा सकती है।

भाजपा ने किया है हमला
भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि जिन लोगों ने भारत को लूटा था, भ्रष्ट्राचार पर प्रहार होता देख खुद को एकजुट करने में लगे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार को अपनी सरकार चलाने के लिए हमेशा एक बैशाखी चाहिए होती है। जब उन्हें लगता है कि उनकी बैशाखी खो रही है, वह तामझाम फैलाने लगते हैं।

इस बार भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। उन्होंने कहाकि एकता का कदम एक दिखावा मात्र है। सम्राट चौधरी ने आगे कहा कि इस वक्त भारत में तीन धाराएं चल रही हैं।

एक है मेक इन इंडिया, दूसरी है ब्रेकिंग इंडिया और तीसरी है लूटिंग इंडिया। पटना में जो जमावड़ा हो रहा है वह यही तीसरी धारा है। उन्होंने कहा कि इस धारा के आधे नेता फिलहाल बेल पर हैं और बाकी कभी भी जेल जा सकते हैं। 

इमरजेंसी के बाद से हालात अलग
सामाजिक विश्लेषक एनके चौधरी ने कहा कि गैर-भाजपाई दलों की बैठक लोकतंत्र के लिए एक स्वागतयोग्य कदम है, हालांकि इसकी अपनी चुनौतियां हैं।

साथ ही उन्होंने विपक्षी दलों की वर्तमान जुटान को इमरजेंसी के बाद कांग्रेस के खिलाफ हुई जुटान से भी अलग बताया। उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र में विपक्षी दलों के पास एकजुट होकर चुनाव लड़ने का अधिकार है।

वर्तमान हालात में यह एक सकारात्मक संकेत है। बिना विपक्ष के लोकतंत्र वास्तविक नहीं है, खासतौर पर जब ताकत किसी एक व्यक्ति या दल में ही हो।

एनके चौधरी ने आगे कहाकि यह इतिहास की भी झलक दिखाता है। कभी कांग्रेस के पास काफी ताकत थी और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी थी।

तब सभी विपक्षी दलों ने अपने सैद्धांतिक मतभेदों को भुला दिया था। सीपीएम तक इसमें शामिल हुए थे और जनसंघ तो जनता पार्टी में मर्ज हो गया था।

क्षेत्रीय क्षत्रपों को संभालना होगा
चौधरी ने आगे कहा कि भाजपा, जनसंघ का ही पुर्नजन्म है, लेकिन एक अंतर है। जनसंघ कमजोर था, जबकि भाजपा मजबूती से उभरी है।

दूसरी बात, इमरजेंसी के बाद सभी विपक्षी दल कमजोर थे और एक पार्टी में शामिल हुए थे। अभी ऐसा नहीं हो रही है। क्षेत्रीय क्षत्रपों, ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), अरविंद केजरीवाल (दिल्ली व पंजाब), एमके स्टालिन (तमिलनाडु), के  चंद्रशेखर राव (तेलंगाना), नवीन पटनायक (ओडिशा) के पास अपनी खुद की जमीन है।

वहीं, कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस खुद को साबित करने में जुटी हुई है, लेकिन अन्य दल इतनी आसानी से उसके पाले में नहीं आने वाले हैं। यही असली चुनौती होगी। हालांकि इन सभी का एक साथ आना एक सकारात्मक संकेत देता है।

नीतीश ने कर दिया अपना काम
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक और सामाजिक विश्लेषक डीएम दिवाकर ने कहा कि नीतीश कुमार मतभेदों और जमीनी लड़ाई के बावजूद इतने सारे गैर-भाजपा दलों को एक मंच परल ला रहे हैं।

यह अपने आप में एक सफलता थी, लेकिन चीजों के आगे बढ़ने के साथ और भी चुनौतियां सामने आएंगी। उन्होंने कहा कि गैर भाजपाई दलों को एहसास हो चुका है कि बिना एक-दूसरे से हाथ मिलाए सत्ता परिवर्तन संभव नहीं है।

हालांकि ऐसा करने के लिए उन्हें अपने मतभेदों को भुलाना होगा। नीतीश कुमार उन्हें बातचीत के लिए टेबल पर लेकर आए हैं। इस तरह से उन्होंने अपना काम कर दिया है।

अब यह इन दलों पर है कि वह क्या करते हैं और कैसे आगे बढ़ते हैं। दिवाकर ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है कि प्रयास थोड़े हों पूरे नतीजों की उम्मीद की जाए।

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