कर्ज में डूबी सरकार, पाई-पाई को मोहताज; पाकिस्तान के हालात के पीछे कौन जिम्मेदार?…

गले तक कर्ज में डूबा पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है। पिछले कुछ महीनों में पड़ोसी देश की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।

पाकिस्तान इस कदर कर्ज में डूबा है कि उसे अब उधार लेने में भी बाधा आ रही है। देश का संकट तब चरम पर पहुंच गया जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पाकिस्तान को कर्ज देना बंद कर दिया।

हालात इतने खराब हो गए हैं कि पाकिस्तान को इस साल हज कोटा वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान में महंगाई आसमान छू रही है।

रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों के दाम बढ़ गए हैं। आम लोग आटा, चावल या दूध के लिए मारामारी कर रहे हैं। पड़ोसी मुल्क की यह तस्वीर बदस्तूर जारी है।

लेकिन पाकिस्तान में इस स्थिति की वजह क्या है? देश को चलाने के लिए विदेशी कर्ज पर निर्भर क्यों रहना पड़ता है? क्या आर्थिक संकट के पीछे पाकिस्तान की कोई गलती जिम्मेदार है? आइए सिलसिलेवार पाकिस्तानी की आर्थिक तंगी के कारणों के बारे में जानते हैं। 

सेना है अधिक शक्तिशाली
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति के लिए सबसे पहले यदि कोई जिम्मेदार है तो वह पड़ोस की सेना। पाकिस्तान में संकट के बावजूद वहां सेना काफी मजबूत है।

उनके पास पैसे या संसाधनों की कमी नहीं है। पाकिस्तान में सेना सरकार से ज्यादा ताकतवर है। उस देश में सेना प्रमुख के पास प्रधानमंत्री से अधिक शक्ति होती है।

पाकिस्तान सैन्य क्षेत्र में जितना पैसा खर्च करता है, वह देश में संकट पैदा करने के लिए काफी है।

बढ़ता रहा सेना का कद
भारत से अलग होकर 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का जन्म हुआ। दो महीने के भीतर ही कश्मीर में पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया।

तब से, पाकिस्तानी सरकार ने भारत के खिलाफ अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने पर तेजी से ध्यान केंद्रित किया है। 1954 में ‘आवश्यकता के सिद्धांत’ के माध्यम से पाकिस्तान में सेना को कुछ विशेष अधिकार दिये गये। ‘आवश्यकता का सिद्धांत’ वास्तव में एक रोमन कानून था, जो विशेष परिस्थितियों में सेना को सरकार संभालने की अनुमति देता था। 

इस खास ताकत का इस्तेमाल कर पाकिस्तानी सेना ने दिन-ब-दिन अपनी ताकत बढ़ा ली है। जिसने लोकतांत्रिक देश को अंधकार में धकेल दिया है।

सेना प्रमुखों ने बार-बार विशेष शक्तियों वाले प्रधानमंत्री को हटाया है। संसद ने हार मान ली है। पाकिस्तानी सेना की इसी ताकत के कारण देश को लगातार 32 साल सैन्य शासन में गुजारने पड़े। चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं कराये गये। ए

अलगाववाद की आग में जला 
पाकिस्तान सरकार के कुछ फैसलों की वजह से देश में अलगाववाद दिन-ब-दिन जोर पकड़ता जा रहा है। विभाजन के समय पाकिस्तान पांच प्रांतों में विभाजित था।

पूर्वी बंगाल, पश्चिम पंजाब, सिंध, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और बलूचिस्तान। 1955 में बंगाल को छोड़कर शेष प्रान्तों के विलय का विधेयक पारित किया गया।

प्रांत के निवासियों ने इस विधेयक को स्वीकार नहीं किया। पाकिस्तान सरकार के इस फैसले से विभिन्न प्रांतों के निवासियों को अस्तित्व पर संकट का सामना करना पड़ा। उन्हें लगता है कि सभी प्रांतों को एक साथ जोड़कर उनकी व्यक्तिगत पहचान को नकारा जा रहा है। सबसे अधिक अलगाव की भावना बलूचिस्तान और सिंध जैसे प्रांतों में विकसित हुई।
 
1960 में पाकिस्तान की राजधानी कराची से इस्लामाबाद स्थानांतरित कर दी गई। सिंध के लोगों ने भी इस निर्णय को अच्छा नहीं माना।

बांग्लादेश के अलग होने के बाद भी ऐसी शिकायतें थीं कि पाकिस्तान में सारा विकास पश्चिमी पंजाब के इर्द-गिर्द घूमता रहा। पाकिस्तान के आर्थिक संकट का सबसे बड़ा और अहम कारण बांग्लादेश प्रकरण में छिपा है।

पाकिस्तान का आधा निर्यात पूर्वी बंगाल (पूर्वी पाकिस्तान) से होता था। दूसरी ओर, पश्चिमी पाकिस्तान से आयात अधिक था। अगर बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ तो देश के व्यापार को बड़ा झटका लगेगा। कई लोग कहते हैं कि बांग्लादेश के जन्म के साथ ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का ढांचा टूट गया। इसने फिर कभी अपना सिर नहीं उठाया।

आतंकवाद ने तोड़ी रीढ़ की हड्डी
पाकिस्तान की समग्र स्थिति के लिए आतंकवाद को भी दोषी ठहराया जाता है। जिसकी शुरुआत 1977 में हुई थी। उस वर्ष, ज़िया-उल-हक एक सैन्य तख्तापलट के माध्यम से पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने।

इसी राष्ट्रपति के कार्यकाल में पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। उन्होंने कहा, अमेरिका की जासूसी एजेंसी सीआईए सोवियत रूस के खिलाफ लड़ने के लिए पाकिस्तान में विद्रोहियों का एक समूह बनाएगी।

जो अफगानिस्तान जाकर अमेरिका के लिए लड़ेगा। परिणामस्वरूप, अमेरिकी सैनिकों को अब अफगानिस्तान नहीं जाना पड़ेगा।

इस समूह के निर्माण के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को हथियार और सैन्य सहायता देना जारी रखा। कई लोगों का मानना ​​है कि यही पाकिस्तान की धरती पर आतंकवाद को जन्म देता है। इसी समय तालिबान का जन्म हुआ। 

1990 के दशक में पूर्व सोवियत संघ के पतन के बाद समूह के लिए अमेरिकी आर्थिक समर्थन समाप्त हो गया। पाकिस्तान में शरण लेने वाले उग्रवादी समूह फिर धर्म के आधार पर अन्य लक्ष्य निर्धारित करते हैं।

एक के बाद एक हमले कर अपनी ताकत दिखाने लगे। अतीत के इन्हीं टुकड़ों में छिपा है पाकिस्तान का वर्तमान और भविष्य। देश की अर्थव्यवस्था हमेशा से अस्त-व्यस्त रही है। राजनीति कभी भी अशांत गद्दे से निकल कर स्थिर नहीं हो पाई है।

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