रायपुर बनेगा पपीता उत्पादक जिला :आईआईएचआर ने तैयार की पपीता की उन्नत प्रजाति अर्का प्रभात…

एक उत्पाद-एक जिला योजना में रायपुर शामिल

किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान एवं बिना ब्याज के 3 लाख का ऋण

रायपुर जिले में बड़े पैमाने पर पपीते की खेती को लेकर उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण दिए जाने की सिलसिला शुरू कर दिया गया है।

एक उत्पाद-एक जिला योजना के तहत रायपुर जिले का चयन पपीते की खेती के लिए हुआ है।

किसानों को उन्नत और रोग-प्रतिरोधी क्षमता वाले पपीते के पौधे उपलब्ध हो सके, इसके लिए इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ हार्टिकल्चर बैंगलोर में विकसित अर्का प्रभात किस्म का पपीता का पौधा रायपुर लाया गया है। इसकी मदद से नर्सरी तैयार कर किसानों को रोपण के लिए अर्का प्रभात पौधा उपलब्ध कराए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। 


रोग-प्रतिरोधक है अर्का प्रभात
पपीता की नई प्रजाति अर्का प्रभात की विशेषता यह है कि यह स्पॉट वायरस रसिस्टेंट है। इसमें वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होने के कारण पौधा रोग-रहित रहता है। यह जानकारी 21 जुलाई को एक उत्पाद-एक जिला के तहत पपीता उत्पादन से पोषण की ओर विषय पर आयोजित कार्यशाला में दी गई। जिला पंचायत रायपुर के सीईओ श्री अविनाश मिश्रा के मार्गदर्शन उद्यानिकी विभाग एवं कृषि विज्ञान केन्द्र रायपुर द्वारा इस कार्यशाला का आयोजन लाभाण्डी में किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया।
कार्यशाला में किसानों को पपीता की खेती के लिए प्रोत्साहित करते हुए उप संचालक उद्यानिकी श्री कैलाश सिंह पैकरा ने कहा कि इसकी खेती के लिए शासन द्वारा किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान तथा बिना ब्याज के 3 लाख रूपए तक का ऋण दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पपीता एक पौष्टिक फल है। इसकी पत्ती की भी उपयोगी है। पपीते के स्वस्थ पौधे उद्यानिकी रोपणियांे एवं कृषि केंद्रों पर भी उपलब्ध है। इसकी खेती के लिए विभाग के अधिकारियों एवं प्रक्षेत्र के कर्मचारियों द्वारा किसानों को जानकारी दी जा रही है। 
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ गौतम राय ने उद्यानिकी के क्षेत्र में किए जा रहे शोध की जानकारी दी। डॉ. अजय वर्मा, निदेशक, विस्तार सेवाएं रायपुर ने बताया कि ‘अर्का प्रभात’ किस्म के पपीते का पौधा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च बैंगलोर से लाए हैं। स्थानीय स्तर पर इसकी नर्सरी तैयार कर किसानों को पौधे उपलब्ध कराने की पहल शुरू की गई है।  
महाप्रबंधक, जिला व्यापार उद्योग श्री अमेय त्रिपाठी ने किसानों को पपीते की मार्केटिंग, कोल स्टोरेज में रख रखाव और प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज योजना की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसान इसका लाभ उठाकर अपना कारोबार को बढ़ा सकते हैं।
वैज्ञानिक डॉ नीरज मिश्रा ने किसानों को बताया गया कि पपीता पौष्टिकता में सबसे अधिक है और इस फल से अनेक प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पाद बनाए जा सकते हैं जैसे जैम, जेली, कतरी, कैंडी आदि। इसके जूस एवं नेक्टर की भी अधिक डिमांड है। पपीते का पाउडर भी बनाया जा सकता है। पपीते का उत्पादन कर मंडी में बेचने के साथ ही किसान इसके प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन पर ध्यान दें तो अधिक लाभ कमा सकते हैं। 

वायरस से बचाव के लिए नीम का तेल और शैंपू का घोल के छिड़काव करें-  
वैज्ञानिक श्री मनोज कुमार साहू ने बताया कि पपीता की खेती को वायरस एवं बग्स से बचाने के लिए नीम के तेल के साथ शैंपू घोल कर छिड़काव किया जाना चाहिए। पपीते के पेड़ के आस-पास गेंदा फूल का पौधा लगाकर पपीते के पौधे को रोग से सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। सहायक संचालक कृषि ने कहा कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। जल्द ही छत्तीसगढ़ उद्यानिकी प्रदेश के नाम से जाना जाएगा। कार्यशाला के समापन पर किसानों को पपीते के स्वस्थ पौधे वितरित किए गए। प्रश्नोत्तर सत्र में किसानों प्रश्नों एवं शंकाओं का समाधान किया गया। 

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