सिर के बल हुई चीन की इकॉनमी, पाकिस्तान को उबारने में कहीं खुद फेल न हो जाए ड्रैगन…

एशियाई देशों में ‘बिग ब्रदर’ की छवि के लिए लगातार हाथ-पांव मार रहे चीन ने अपने चेहरे पर कई मुखौटे लगाए हुए हैं। इकॉनमी के स्तर भारत के दो पड़ोसी मुल्कों की हालत खस्ता है।

एक पाकिस्तान और दूसरा उसका खास दोस्त चीन। चीन भले ही कितनी खुद की शेखी बघार ले लेकिन खस्ताहाल इकॉनमी के आंकड़े उसके पसीने छुड़ा देंगे।

पाकिस्तान को उसकी माली हालत से उबारने का बीड़ा उठाने वाले चीन के लिए स्थिति इतनी खराब है कि कहीं उसकी ही इकॉनमी पूरी तरह से फेल न हो जाए।

हाल ही में आए आंकड़ों की बात करें तो चीन के चीन के निर्यात और आयात दोनों में ही काफी गिरावट आई है।

घट गया एक्सपोर्ट और इमपोर्ट

अगस्त में एक साल पहले की तुलना में चीन की इकॉनमी तेज गिरावट देखी गई। दुनियाभर में कम हुई वैश्विक मांग के चलते चीन की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा रहा है।

गुरुवार को जारी सीमा शुल्क आंकड़ों से पता चलता है कि चीन का अगस्त में निर्यात लगातार चौथे महीने गिरावट के साथ 8.8 प्रतिशत गिरकर 284.87 बिलियन डॉलर हो गया। आयात 7.3 प्रतिशत गिरकर 216.51 अरब डॉलर पर आ गया।

जुलाई में कुल व्यापार अधिशेष 80.6 बिलियन डॉलर से गिरकर 68.36 बिलियन डॉलर हो गया।

चीन में कोविड-19 महामारी से उम्मीद से पहले उबरने में नाकामी के बाद चीनी नेताओं ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए विभिन्न नीतिगत उपाय किए हैं।

मगर ये काफी नहीं थे। चीन के केंद्रीय बैंक ने छोटे व्यवसायों के लिए कुछ टैक्स राहत उपाय देने के लिए लोन के नियमों को आसान बना दिया है, मगर खरीदारों की कमी के कारण यह उपाय काफी नहीं है।

यूरोप और एशिया में फेडरल रिजर्व और केंद्रीय बैंकों की तरफ से कई दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी मुद्रास्फीति को कम करने के लिए पिछले साल ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू करने के बाद चीनी निर्यात की मांग कमजोर हो गई।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दर वृद्धि का अधिकांश प्रभाव अभी भी प्रमुख पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में नहीं पड़ा है, जहां उपभोक्ता खर्च अपेक्षाकृत मजबूत बना हुआ है।

पाकिस्तान की कर रहा मदद

उधर लगातार इकोनॉमिक क्राइसिस से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए चीन दोस्त बना हुआ है। चीन ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए 1 अरब डॉलर की मदद भी की है।

इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड से लोन सपोर्ट मिलने को लेकर अनिश्चितता के बीच बेहद कम विदेशी भंडार से जूझ रहे देश चीन की तरफ मिलने वाली इस मदद की काफी आस थी।

मगर आशंका यह है कि दूसरों की हालत में सुधार लाते लाते चीन कहीं खुद मुश्किल में न पड़ जाए।

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