जब लक्षद्वीप को कब्जाने निकला जिन्ना का जहाज, पटेल के ऐक्शन पर भागना पड़ा उलटे पांव; विलय की कहानी…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों लक्षद्वीप का दौरा किया था।

इस दौरान उन्होंने लक्षद्वीप के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया और लोगों से यहां विजिट करने की अपील की। पीएम के इस दौरे के बाद हिंद महासागर के द्वीप राष्ट्र मालदीव को काफी मिर्ची लगी है।

बता दें मालदीव दक्षिण एशिया में एक ऐसा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था ज्यादातर पर्यटन पर ही निर्भर है। लक्षद्वीप और मालदीव की जलवायु बहुत हद तक एक जैसी है।

पीएम मोदी द्वारा लोगों को लक्षद्वीप भ्रमण करने की अपील के बाद मालदीव के मंत्रियों को डर है कि कहीं उनके देश में पर्यटकों की आमद कम न हो जाए और वे लक्षद्वीप को वेकेशन के लिए पहली पसंद न बना लें।

इसके बाद मालदीव की एक मंत्री ने पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां भी की, जिसके बाद मालदीव में कार्रवाई करते हुए तीन मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया है।

बहरहाल इस हालिया विवाद के बाद से एक बार फिर लक्षद्वीप चर्चा में हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि लक्षद्वीप कैसे भारत का हिस्सा बना? आइए जानते हैं इसके भारत विलय की कहानी।

पाकिस्तान को कैसे आया लक्षद्वीप का ख्याल
बटवारे के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच कई सूबों का बटवारा हुआ। इस दौरान तीन रियासतों – जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद पर पाकिस्तान अपना हक जताना चाहता था। पाकिस्तान का कहना था कि इन सूबों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है इसलिए इसे पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए।

मगर सरदार पटेल की सूझबूझ के कारण आज ये तीनों रियासतें भारत का अभिन्न हिस्सा हैं। सरदार पटेल ने जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह से, जम्मू-कश्मीर को विलय पर साइन करवाकर और हैदराबाद को पुलिस कार्रवाई कर भारत में मिला लिया। इस दौरान पाकिस्तान की नजर लक्षद्वीप पर भी थी, जहां मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा थी।

एक कदम आगे निकले पटेल
बता दें लक्षद्वीप में ज्यादातर आबादी मुस्लिम हैं और यही आंकड़ा साल 1947 के आस-पास भी था। पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने सोचा कि लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी है और भारत ने भी इसपर अपना दावा नहीं किया है, इसलिए वहां के लोग पाकिस्तान के साथ आ सकते हैं।

मगर पाकिस्तान का यह दाव उसके लिए उलटा पड़ गया। उधर पाकिस्तान ने लक्षद्वीप को कब्जाने के लिए युद्धपोत भेज दिया। इतिहासकार बताते हैं कि यहां पाकिस्तान की सोच से सरदार पटेल की सोच एक कदम आगे रही।

पटेल ने आरकोट रामास्वामी मुदालियर और आरकोट लक्ष्मणस्वामी मुदालियर को लक्षद्वीप विलय की जिम्मेदारी सौंपी। पटेल ने दोनों को तुरंत सेना लेकर लक्षद्वीप की ओर जाने के लिए कहा। 

तिरंगा देख लौटा पाकिस्तान का युद्धपोत
सरदार पटेल ने दोनों भाइयों को संदेश दिया था कि जितनी जल्दी हो सके लक्षद्वीप पर तिरंगा फहरा दिया जाए। वहीं पाकिस्तान का दल समुद्र के रास्ते आ रहा था।

पाकिस्तान  की सेना लक्षद्वीप के करीब पहुंचती इससे पहले भारत की सेना ने लक्षद्वीप पहुंच कर तिरंगा झंडा फहरा दिया। कुछ देर बाद जब पाकिस्तान का युद्धपोत लक्षद्वीप पहुंचा तो भारत का झंडा देख दबे पांव वापस लौट गया।

इस तरह लक्षद्वीप भारत का हिस्सा बन गया। इतिहासकार बताते हैं कि यदि आधे घंटे की देरी हो जाती तो शायद आज इतिहास कुछ और ही होता। 

कब नाम पड़ा लक्षद्वीप?
मौजूदा वक्त में लक्षद्वीप भारत का केंद्र शासित प्रदेश है। जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद भारत में केंद्र शासित प्रदेशों की कुल संख्या कुल 8 हो गई है, जिनमें से एक लक्षद्वीप भी है। साल 1956 में लक्षद्वीप को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था।

पहले इसे लक्कादीव, मिनिकॉय, अमीनदीवी के नाम से जाना जाता था मगर साल 1973 के बाद इस क्षेत्र का नाम लक्षद्वीप पड़ा। कुल 36 छोटे-बड़े द्वीप हैं, जिसमें ज्यादातर आबादी नौ से 10 टापुओं पर ही निवास करती है।

लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप की जनसंख्या कुल 64473 है। यहां की साक्षरता दर 91.82 फीसदी है, जो भारत के कई बड़े बड़े शहरों से ज्यादा है।

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