पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल ने 89 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस; 10 जनवरी को कुरुदडीह में अंतिम संस्कार…

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार का बघेल का 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।

सोमवार सुबह 6 बजे उन्होंने रायपुर के बालाजी अस्पताल में अंतिम सांस ली है। वे पिछले 3 महीने से बीमार चल रहे थे। सीएम विष्णुदेव साय ने उनके निधन पर दुख जताया है।

बेटी के विदेश से लौटने के बाद 10 जनवरी को कुरुदडीह में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

पाटन सदन में उनका पार्थिव देव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया पर पुरानी तस्वीर शेयर कर पिता के निधन की जानकारी दी। भूपेश बघेल दिल्ली दौरे पर थे। वे सुबह 11.55 बजे की फ्लाइट से रवाना होकर 1.40 बजे रायपुर पहुंचेंगे।

नंदकुमार बघेल को ब्रेन और स्पाईन से सम्बंधित पुरानी बीमारी थी। 21 अक्टूबर 2023 बालाजी हॉस्पिटल मोवा रायपुर में भर्ती हुए तो उन्हें दिमाग में खून का थक्का जमा था और उन्हें निमोनिया था और पूरे शरीर में इन्फेक्शन फैला था जिसे सेप्टिसिमिया कहते हैं। जिसकी वजह से नंदकुमार बिस्तर में पड़ गए और इन्हें वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी।

इन विवादों से चर्चा में रहे नंदकुमार बघेल

‘रावण को मत मारो’

भूपेश बघेल के पिता नंद कुमार के आपत्तिजनक बयानों से प्रदेश में लगातार विवादों में घिरते रहे, हालांकि ऐसा पहली बार हुआ है कि जब उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। वैसे तो वे पहले से ही ब्राह्मण विरोधी बयान देते रहे हैं, लेकिन पहला चर्चित विवाद 2001 में उनकी पुस्तक ‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो’ था।

इसमें वो महिषासुर, रावण को महान योद्धा भी बता चुके हैं। साथ ही उनके कुछ विवादों में पुस्तक प्रतिबंधित है ‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो’ पुस्तक नंदकुमार बघेल की पुस्तक में मनुस्मृति और वाल्मिकी रामायण, तुलसीदास के रामचरित मानस पर आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं।

इस पुस्तक में बघेल ने राम को काल्पनिक चरित्र बताया था। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि सर्वणों ने राम नाम का अस्तित्व दलितों, मूलनिवासियों और आदिवासियों पर राज करने के लिए उन्हें दबाने, कुचलने के लिए गढ़ा है, जिससे दक्षिण के विचारक पेरियार के विचार भी शामिल हैं।

इस पुस्तक को 2001 में अजीत जोगी सरकार ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और वर्गों के बीच द्वेष से बढ़ाने वाला मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया था। इस दौरान नंद कुमार बघेल इसके खिलाफ हाई कोर्ट चले गए थे। जहां हाईकोर्ट की फुल बेंच ने 17 साल बाद उनकी याचिका को खारिज कर दी और पुस्तक पर बैन बरकरार रखा।

‘रावण, महिषासुर महान योद्धा’

प्रदेश में बीते कुछ सालों से नंदकुमार बघेल ने गांवों में दुर्गा पूजा और रावण वध के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था। वे गांव-गांव का दौरा कर वहां के आदिवासी समुदाय से अपील करते रहे कि वे दशहरे को रावण पुतले का दहन ना करें। पिछले साल 2019 में उन्होंने दशहरा के कार्यक्रम में रावण को महान योद्धा, पुरखा बताकर विजयादशमी को शोक दिवस का नाम दिया था। वे तब से ही सभी जगहों पर जाकर महिषासुर, रावण, मेघनाद के पुतले जलाए जाने और दुर्गा पूजा का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि महान योद्धाओं का वध ब्राह्मण समाज बहुजन मूल संस्कृति को अपमानित करने के लिए कर रहा है।

ब्राह्मणों पर विवादित बयान, भेजे गए जेल

8 सितंबर 2021 को आगरा गिरफ्तार कर रायपुर कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। उनपर ब्राह्मणों को लेकर विवादित बयान देने का आरोप था। इसके बाद भूपेश बघेल ने कहा था कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।

दुर्ग लोकसभा से चुनाव भी लड़ा, लेकिन हारे

नंदकुमार बघेल चाणक्य, राहुल सांकृत्यायन और पंडित जवाहरलाल नेहरु को अपना आदर्श बताते रहे। कभी सर्वोदय आंदोलन से जुड़े रहे नंदकुमार बघेल ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भी भाग लिया था। बाद के दिनों में वो कई सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे।

1984 में उन्होंने जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में दुर्ग लोकसभा से चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

बसपा और जनता दल से जुड़े रहे नंद कुमार बघेल की पहचान, पिछड़े वर्ग के कट्टर समर्थक और ब्राह्मणवाद के कट्टर विरोधी नेता के तौर पर रही है और अपनी सैद्धांतिक लड़ाइयों को लेकर वे बेहद गंभीर माने जाते रहे।

बेटे भूपेश बघेल के साथ विवाद

आर्थिक रुप से पिछड़े सवर्णों को 10 फ़ीसदी आरक्षण दिए जाने का विरोध करने वाले नंदकुमार बघेल शुरू से कहते रहे हैं कि समाज में जिस वर्ग का जितना प्रतिनिधित्व है, उसे उतना ही आरक्षण दिया जाना चाहिए। वे विधानसभा और लोकसभा की टिकट भी इसी आधार पर दिए जाने को लेकर आंदोलन चलाते रहे।

दिसंबर 2018 में बेटे भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद कई अवसरों पर उन्होंने ब्राह्मण विधायक, मंत्री यहां तक कि उच्च न्यायालय के महाधिवक्ता तक की सार्वजनिक रुप से यह कहते हुए आलोचना की थी कि इनके कारण राज्य के पिछड़े वर्ग को न्याय नहीं मिल रहा है।

उन्होंने भूपेश बघेल से एक बार सार्वजनिक मंच पर यह मांग रख दी कि बस्तर के इलाक़े में सारे सवर्ण अफ़सरों को बर्ख़ास्त किया जाए और उनकी जगह पिछड़े वर्ग के अधिकारियों की नियुक्ति की जाए।

दोहराते रहे बुद्धमय भारत चाहते हैं

एक आयोजन में उन्होंने कहा था, “ईश्वरवाद झूठ है। ईश्वर की आड़ में इस देश में एक पाखंड चलता रहा है, जिसमें ब्राह्मण अपना हित साधते रहते हैं। देवी-देवता और पत्थर की मूर्तियां हमारी समस्याओं का हल नहीं कर सकतीं। हमें तो बुद्ध की तरह अपने विवेक पर भरोसा करना पड़ेगा.”

जब भूपेश बघेल की माता बिंदेश्वरी बघेल का निधन हुआ तब भी पिता पुत्र की धार्मिक मान्यता में मतभेद देखने को मिला था। सनातन धर्म के रीति-रिवाज से भूपेश बघेल का पूरा परिवार 10 दिनों तक श्राद्ध कार्यक्रम कर रहा था, जिसमें पिंडदान से लेकर गंगा में अस्थियां विसर्जन तक सारे रीति रिवाज सनातन धर्म के थे। लेकिन इससे इतर दौरान नंदकुमार बघेल अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार बौद्ध भिक्षुओं के साथ राजिम में कर रहे थे।

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